मंगलवार, 11 जून 2013

थोड़ा पर्सनल..

शादी के तीन साल। नौकरी के दो साल। सब रोजगार के बाद शादी करते हैं। शायद शादी को भार समझते हैं। हमने शादी की। रोजगारी -बेरोजगारी से इसका कोई सम्बन्ध नहीं समझा। क्यों की हमारे लिए शादी प्यार का ही उत्सव है। 

कुछ पहले प्यार फिर नौकरी तब शादी। नौकरी नहीं हुई तो प्यारे -प्यारी नौकरी वाले के पास उड़ जाते हैं। इसमे माँ -बाप भी मदद करते हैं। कुछ रोजगार विहीन होकर अभी शादी विहीन बैठे हैं। कुछ पीएचडी भी हो गए हैं, साहित्यिक और फ़िल्मी लिक्खाड़ भी हो गए हैं, इस दौरान वो कई बार प्रेमी भी बने होंगे, अब सामजिक ठेकेदार बन गए हैं, कई सरकारी गैर-सरकारी नियमों के अनुसार 'ओवरऐज' हो गए हैं , पर शादी के लिये नहीं। पूछा सर अब क्या करोगे ? बस यार नौकरी लग जाये शादी कर लेंगे ! 

मेरी दोस्त हमें जब प्रेम हुआ तब रोजगार नहीं था न ही रोजगार का हिसाब -किताब रखने वाला समाज। हमारे लिए शादी प्रेम के उत्सव का सामाजिक रूप है। दोनों के दिल में पल रहे शुभ और सुन्दर भावों की सामजिक अभिव्यक्ति थी। मेरी दोस्त हमारे लिए शादी प्रेम का बंधन नहीं। एक पल के वादे का सघनतम रूप है। जीवन संघर्ष में एक कोमल एहसास है। नैराश्य में टिमटिमाती एक लौ है। दुनिया को सुन्दर बनाने का एक प्रयास है। एक साथ दुनिया को प्यार करने की सीख है। 

आओ मेरी दोस्त शादी और जन्मदिन की ख़ुशी में कैंडल जलाएं.. रोशनी फैलाएं..!!

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